Dimagi Gulami (दिमागी गुलामी)
Rahul Sankrityayan
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लेखक के अनुसार 'दिमागी गुलामी' से तात्पर्य मानसिक दासता से है। ये मानसिक दासता प्रान्तवाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद व राष्ट्रवाद के नाम पर मनुष्य के मन-मस्तिष्क को जकड़ लिया है। मनुष्य की सोच इन्हीं बातों पर टिकी है जिससे संकीर्णता की भावना ने अपना प्रभाव जमा लिया है। लेखक कहते हैं आज जिस जाति की सभ्यता जितनी पुरानी होती है उनके मानसिक बंधन भी उतने ही अधिक जटिल होते हैं। हमारी सभ्यता जितनी पुरानी है उतनी ही अधिक रुकावटें भी हैं। हमारी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक समस्याएं इतनी अधिक और जटिल हैं कि हम उनका कोई इलाज सोच ही नहीं सकते जब तक हम अपनी विचारधाराओं को बदलकर सोचने का प्रयत्न नहीं करते हैं। अपने प्राचीन काल के गर्व के कारण हम अपने भूत में इतने गहराई से बंधे हैं कि उनसे हमें ऊर्जा
- Format: Pocket/Paperback
- ISBN: 9789359646510
- Språk: Engelska
- Antal sidor: 58
- Utgivningsdatum: 2023-12-05
- Förlag: Diamond Pocket Books Pvt Ltd