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यह उपन्यास श्रावक उमरावमल ढढ्ढा की जीवनी पर आधारित है। श्री ढढ्ढा का जीवन सीधा, सादा और सरल था। रायबहादुर सेठ के पौत्र और एक बड़ी हवेली के मालिक होकर भी उन्होंने आमजन का जीवन जिया। पुरखों के द्वारा छोड़ी गई करोड़ों की सम्पत्ति को अपने भोग-विलास पर खर्च नहीं करके दान कर दी। उनके पुरखे अंग्रेजों के बैंकर थे। उनका व्यवसाय इन्दौर, हैदराबाद तक फैला था। महारानी अहल्याबाई के राखीबंद भाई उनके पुरखे थे। उन्होंने पुरखों की सम्पत्ति को छुए बिना नौकरी करके अपना जीवन-यापन किया। श्री ढढ्ढा वस्तुत एक अकिंचन अमीर थे। वे सचमुच ही निर्लेप नारायण थे। उमरावमल ढढ्ढा मानते थे कि मैं सबसे पहले इंसान हूँ, बाद में हिन्दुस्तानी। उसके बाद जैन। जैन के बाद श्वेतांबर। स्थानकवासी परंपरा का श्रावक। वे
- Format: Inbunden
- ISBN: 9788126730414
- Språk: Engelska
- Antal sidor: 134
- Utgivningsdatum: 2017-07-25
- Förlag: Rajkamal Prakashan Pvt. Ltd