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उनका अध्ययन असीम है, स्मृति अथाह और वैचारिक व्याकुलता अविराम। नामवर सिंह के रूप में हिन्दी के पास एक ऐसा व्यक्तित्व है जो सतत् चिन्तनशील है, सतत् सृजनरत है, सदैव मुखर है। आलोचक या लेखक होना उनके लिए सिर्फ एक औपचारिक बाना नहीं है जिसे अवसर देखकर पहना और उतारा जा सके। उनका होना वही होना है जैसा हम उन्हें देखते हैं। जब वे नियमपूर्वक नहीं लिख रहे थे, और ज्यादातर भाषणों और व्याख्यानों में अपनी बात रख रहे थे तब भी उन्होंने बहुत लिखा कभी किसी पुस्तक की भूमिका के रूप में, कभी किसी आयोजन के लिए और कभी स्वतंत्र किसी पत्र-पत्रिका के लिए।इस पुस्तक में उनके ऐसे ही असंकलित और कुछ अप्रकाशित आलेखों को संकलित किया गया है। इनमें से जो आलेख किसी पुस्तक की भूमिका के तौर पर लिखे गए, वे भी सिर्फ पुस्तक की
- Format: Inbunden
- ISBN: 9788126730636
- Språk: Engelska
- Antal sidor: 224
- Utgivningsdatum: 2018-01-01
- Förlag: Rajkamal Prakashan Pvt. Ltd