bokomslag Tittli
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  • 190 sidor
  • 2025
चार्टली साहब की नील-कोठी टूट चुकी थी। नील का काम बंद हो चला था। जैसा आज भी दिलाई देता है, तब 'भी उस गोदाम के हौज और पक्की नालियां अपना खाली मुंह खोले पड़ी रहती थी, जिससे नीम की छाया में गाए बैठकर विभाग लेती थीं। पर बार्टली साहब को वह ऊंचे टीले का बंगला, जिसके नीचे बड़ा-सा ताल था, बहुत ही पसंद था। नील गोदाम बंद हो जाने पर भी उनका बहुत-सा रुपया दादनी में फसा था। किसानों को नील बोना तो बंद कर देना पड़ा, पर रुपया देना ही पड़ता। अन्न की खेती से उतना रुपया कहां निकलता, इसलिए आस-पास के किसानों में बड़ी हलचल मची थी। बार्टली के किसान आसामियों में एक देवनन्दन भी थे। मैं उनका आश्रित ब्राह्मण था। मुझे अन्न मिलता था और में काशी में जाकर पढ़ता था। काशी की उन दिनों की पंडित-मंडली में स्वामी दयानन्द के आ जाने से
  • Författare: Jaishankar Prasad
  • Format: Pocket/Paperback
  • ISBN: 9789356824751
  • Språk: Hindi
  • Antal sidor: 190
  • Utgivningsdatum: 2025-01-23
  • Förlag: Prabhakar Prakashan Private Limited